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श्रीतारा
गिरिनन्दिनी शुभ दीन हरखि मिथिलापुर आई।
चन्द्र कोटि छवि विमल वसन लखि आनन्द उर न समाई।
नयन चकोर सरद विधुमण्डल एकटक रह्यो लगाई।
मोहित मधुकैटभ मद भंजनि सुरगण शक्ति समूले।
महिष महारव सबल विपद लखि सुमन सुवरखहिं फूले ।।
शोभाधाम कामना सुरतरु जनमन दायिनि चैन।
मणिमय अज़रि कनक गिरि वासिनि नाशिनि धूमर नैन।।
चण्डमुण्ड सिर खण्डिनि भगवति रक्तबीज संघारि।
शुम्भ निशुम्भ दनुज कुल नासिनि सिंहक पीठ सवारि।।
सुर गन्धर्व दनुज गण किन्नर कर गोचर कर जोरि।।
पाय अभयवर दहिन हाथ तुअ अति हर्षित चित मोरि।।
तारा पद सरोज शरणागत सेवक संकर गाई।
नित अभिनव मंगल मिथिलापुर घर - घर बाजत बधाई।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) शंकर
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