ADHURI KAVITA SMRITI
शनिवार, 17 सितंबर 2016
587 .श्रीगंगा ५
५८७
श्रीगंगा ५
गंगे अयलहुँ तोहर समाज। आब की करत यमराज।।
गंगे दूर सौ देखल गंगा। गंगा पाप न रहले आगंग।।
गंगे तिल कुश जल लेल हाथ। गंगे तहिखन यमधुन माथ।।
गंगे भनथि महेश सुजान। गंगे कलियुग गति नहि आन।!
( मिथिला तत्व विमर्श )
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