५८६
श्रीगंगा ४
उधारिअ अधम जन जानि।
हम बनिजार पाप बटमार। सुकृत बेसाहल सुरसरि धार।
जेहिखन देखल धवल जलधार। जीवन जनम सुफल संसार।
सीकर - निकर - परस यदि भेले। मन अनुताप पाप दूरि गेल।।
जे मम उधारल से मोर आधे। कहु मोर सुरसरि किय अपराधें।।
भनथि महेश नमित कय शीस। तोहैं करुणामयि हमें निरदोस।।
( प्राचीन गीत )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें