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श्रीशिवंकरि
जय जय जय नत सतत शिवंकरि परिहित नर सिर माले ।
लम्बित रसन दसन अति भीषम वसन मिलल बघछाले।।
चउदिस मानुस माँसु मुदित अति फेरु फुकर कर रासे।
मणिमय विविध विभूषण मंडित वेदि विदित तुअ वासे।।
भूत पपरेत पिशाच निशाचर अगनित जोगिनि जाले।
जखने न जगत - जननि तुअ संगति तहँ न कहिअ कोन काले।।
विमल बाल रविमण्डल सन तुअ तीन नयन परगासे।
असुर रुहिर मदिरा मद मातलि वदन अमिञ सम हासे।।
तुअ अनुरूप सरूप बूझिअ नहि तैओ तोहर गुन गाऊं ।
जे कहि तुअ पद बन्ध करिञ देवि निञ जनें लोचन लाऊ।।
लोचन
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