५८० श्रीगंगा ३
सुनिय डमरू धुनि , शिव पुनि पुनि , आब एत करू विसराम।
पूजा उपचार लिय , सत्वर गंगाकेँ दिय , कहि देव हमरो प्रणाम।।
करतिहि कृपा गंगा , सकल कलुख भंगा , आब जीव परसन भेल।
एतै ओतीह सुरधुनि , अपन किंगकर गुनि , सब पातक दुर गेल।।
थाकि गेलि जनी जाति , बेटा बेटी पोता नाति , कामति कहार संग साथी।।
मोर हेतु आउ एत , धन्यवाद लोक देत , सभ जन हरषि नहाथि।।
भन कवि विद्यापति , दिअ देवि दिव्यगति , पशुपतिपुर पहुँचाय।
गौरी संग देखि शिव , कि सुख पाओल जिव , से आव न कहल जाय।।
( मिथिला तत्व विमर्श )
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