बुधवार, 28 सितंबर 2016

599 . श्रीदुर्गा


                                      ५९९ 
                                   श्रीदुर्गा 
धरणिधर - वर शिखर - चारिणि दृप्त दानव - दल - विदारिणि ,
विधि विभावसु - वरुण - वासव - वंदितं ललिते। 
शर - शरासन - पाश - धारिणि सतत - संकुल - समर - कारिणि ,
मातरंगकुश - दलित - दुरित - प्रणत - परिकलितं।।
जय देवी दुर्गे दुर्गवासिनि सादर - स्मित - सुभग - हासिनि ,
भाल - बाल - मारल - निर्म्मल - चारु - चन्द्रकलं। 
सुधासार - सरो - विहारिणि चन्द्रिका - चयचारु - हारिणि ,
श्रवण मण्डल - लोल - कुण्डल - शोभि गण्ड - तले।।
असित- पंकज - गर्व - गञ्जन नील - लोहित - ह्रदय - रञजन ,
खञ्जन - दुति - चार - चञ्चल - लोचनपत्रितयं। 
मणि - मयूखावलि - विराजित कनक - नूपुर - राव - राजित ,
चरण - निर्जित -मधुप - रूप - युत - सरसिज - द्वितयं।।
कृत - भवानी - चरण - वन्दन सुकवि पण्डित - राजनन्दन ,
शंकरार्पित - गीत - तोषित - मानसे वरदं। 
पालया विनपाल - नायक - रूप - निर्ज्जित - पञ्चसायक ,
मानसिंह महीशमीश प्रणति परिचय दे।!
( मैथिल प्राचीन गीतावली )  

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