५९1
भगवती गीत
शंकरि शरण धयल हम तोर।
कुकुरम देखि अधिक यदि कोपित की करता यम मोर।
सुर तरुअर तर शिव उर ऊपर वास हास् अति घोर।
सहस दिवसमणि चान कोटि जनि तनु दुति करत इजोर।।
सहज खर्च अति गर्वक मातलि लम्बोदरि जगदम्बे।
मनुज नागवर सकल सुरासुर सबकां तोहिं अवलम्बे।।
बाम हाथ माथ अति कोमल दहिन खर्ग कर काती।
पाँच कपाल भाल अति राजित श्री इन्दीवर कांती।।
शिव शव आसिनि संग योगिनि गण पहिरन वाघरि छाला।
रक्त रक्त लहलह कर रसना नवयौवन मुण्डमाला।
फणी नेउर केउर फणी कंकण हृदयहार फणी राजे।
सहरसना फणी फणी - युग कुण्डल जटामुकुट फणी छाजे।।
चउदिस फेकव शव मुंडावलि चिता अग्नि सन गेहे।
तीन नयन मणिमय सब भूषण नव जलधर सम देहे।।
शिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक नर मुनि धरत धेयाने।
त्रिभुवन तारिणि नरक निवारिणि ! सुमति कृष्णपति भाने।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) कृष्णपति
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें