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श्रीकंकाली
वदन भयान कान शव कुण्डल विकट दशन धन पांती।
फूजल केश वेश तुअ के कह जनि नव जलधर कांती।।
काटल माथ हाथ अति शोभित तीक्ष्ण खडग कर लाई।
भय निर्भय वर दहिन हाथ लए रहिअ दिगम्बरि माई।।
पीन पयोधर ऊपर राजित लिधुर संवित मुण्डहारा।
कटि किंकिणि शव - कर करू मण्डित सिक वह शोणित धारा।।
वसिय मसान ध्यान शव ऊपर योगिनि गण रहू साथे।
नरपति पति राखिअ जगईश्वरि करू महिनाथ सनाथे।।
( मैथिल भक्त प्रकाश ) महाराज महिनाथ ठाकुर
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