ADHURI KAVITA SMRITI
गुरुवार, 4 मई 2017
753 . जय हिमालय नन्दनी।
७५३
जय हिमालय नन्दनी।
हरक धरनि तोहे देवि गोसाउनि। चौदह भुवनक रानी।
विष्णुक घर तोहे कमला सुन्दरि ब्रह्मा घर तोहे वानी।।
जत किछु जगत तोहर थिक विलसित तुअ गुण अपरूब भाँति।
कहुखने बाला कहुखने तरुणी कहुखने अपरूब कांति।
( मैथिली शैव साहित्य )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें