ADHURI KAVITA SMRITI
बुधवार, 10 मई 2017
759 . हेरह हरषि दुख हरह भवानी। तुअ पद शरण कए मने जानी।।
७५९
हेरह हरषि दुख हरह भवानी। तुअ पद शरण कए मने जानी।।
मोय अति दीन हीन मति देषि। कर करुणा देवि सकल उपेषि।।
कुतनय करय सकल अपराध। तैअओ जननिकर वेदन बाघ।।
प्रतापमल्ल कहए कर जोरी। आपद दूर कर करनाट किशोरी।।
( तत्रैव )
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