ADHURI KAVITA SMRITI
सोमवार, 1 मई 2017
750 . भज मन जगजननी भव भाविनी।
७५०
भज मन जगजननी भव भाविनी।
यो किछु कोयि करजन मानसा भरण पुरण करतारिणि। शिर पर चन्द्र मुकुट विराजे मुख वेसरि सोहे।
सोहे तिलक पटम्बर कुण्डल देखि महेशर मोहे।।
( तत्रैव )
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