ADHURI KAVITA SMRITI
रविवार, 30 अप्रैल 2017
749 . भज मन जगजननी भव भाविनी।
७४९
भज मन जगजननी भव भाविनी।
यो किछु कोयि करजन मानसा भरण पुरण करतारिणि। शिर पर चन्द्र मुकुट विराजे मुख वेसरि सोहे।
सोहे तिलक पटम्बर कुण्डल देखि महेशर मोहे।।
( तत्रैव )
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