मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

738 . मातु भवानी शरण तोहारो जाओ बलिहारी।।


                                      ७३८
मातु भवानी शरण तोहारो जाओ बलिहारी।।
मन क्रम वचन अओर नहि भावत। 
एहि संसार काहे अटकावत।।
अओर कि अओर सनो मन मेरो तोह सनो। 
मोरब प्रीति जैसे शसि कुमुदिनि सनो।।
नृप जगजोति कह आस न कायक। 
जनम जनम तोहरे गुण गायक।।
चरण कमल तुअ शरण भए मोहि। 
अपने रोपि का मारह पालह।।
                                      ( मुदित कुबलयाश्व नाटक ) 

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