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नयनक दोष कतय नहि होए। जननि कृपावसे दूकर धोए।।
करजोड़ि पए पड़ि विनमञो तोहि। एहि दुखभार संतारह मोहि।।
कतए कतए नहि कएलह उधार। पालि न मारिअ करह विचार।।
भयभञ्जनि तोहे माए भवानि। आबे किए बिसरलि अपनुकि वानि।।
नृप जगजोति कह न कर उदास। जतहि ततहि जग तोहरे आस।।
( तत्रैव )
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