रविवार, 16 अप्रैल 2017

736 . मधुकैटभ महिषासुर मारल इन्द्र आदि देव तव जो करे।।


                                     ७३६
मधुकैटभ महिषासुर मारल इन्द्र आदि देव तव जो करे।।
धूम्रलोचन जम धरहि पठाओल चण्डमुण्ड रक्तबीज संहरे।।
समरे भवानि हाथे बैरि जिब गेल सुरमुनि मने हरख भेला। 
सवे दिगपाल अपन पद थापल सबक विषाद खनहि दुर गेला।।
ताहि उपर शुम्भ निशुम्भ विदारल चौदिस जय जय किन्नर गाव। 
जहा जहा संकट देवि उधरि लेह नृप जगजोतिमल भगतिहि लाव।।
                  जगज्ज्योतिर्मल्ल  ( कुञ्जविहारी नाटक )

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