७४२
सकल असार सार पद पंकज तोहर मनहि विचारल हे।
जे तोहे करब से करह भवानी हट कए ह्रदय लगाओल हे।।
गुण , दोष मोहि एकओ नहि जानह दारुक पुतरि उदासिन हे।
जे किच्छु करावह करओ से माता हमें नहि अपन स्वआधिन हे।।
तोह छाड़ि आन काहु नहि समुझनो दीन न भाषणों वाणी हे।
भाव जञ्जाल जाल मोर जालह शरणागत मोहि जानी हे।
तोहे ठकुरायिनि हमें तुअ सेवक ई अपने अवधारी हे।
कत अपराध पड़त अगेआनाहि से सबे हलह समारी हे।।
नृप जगजोतिमल एहन बुझाबए चण्डी चरन चित राखी हे।
सब सिधि आबए भगवति झुमरि सुमरि सुमरि मन साखी हे।।
( मुदित कुबलयाश्व नाटक )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें