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जननि , वीणा - वादिनी ! व्याप्त छी संसार में अहँ ,
विपुल - लोकाहलादिनी ! जननि , विणा - वादिनी !
मोह तिमिरक नाश हो। विगत रजनी भेल , मिहिरक ,
आब शारद - हास हो। विजय मंगल - शंख फूकू ,
अयि अशेष - निनादिनी ! जननि , वीणा - वादिनी !
युवक देशक क्षुब्ध यौवन ! अग्नि - बीज बजाउ , जय - जय
करथु निर्भय क्रान्ति - वाहन। दिअह नव साहस , अखण्डित
शक्ति प्राणोन्मादिनी। जननि , वीणा - वादिनी !
आरसी प्रसाद सिंह
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