बुधवार, 12 अप्रैल 2017

732 . जयति भवानी हे कल्याणी , सकल ताप परिताप हरु


                                      ७३२
जयति भवानी हे कल्याणी , सकल ताप परिताप हरु
देबहुँके दुःख दूर कयल मा , अधमाधम हम , पाप हरु। 
जगत विदित अछि कथा अहाँक , घट घट वासिन हे मइया  
कखनहु काली कखनहु दुर्गा , रूप धारिनी हे मइया 
कामाख्या विंध्याचल दौड़ी , हमर मोह भवचाप हरु।।देबहुँके।।
जखन - जखन दुख बढ़लै , बनलौ , दैत्य विनासिनि हे मइया 
रणमे शुम्भ - निशुम्भ संहारल , महिषा मर्दिनी हे मइया 
मरुभूमि केर मृगा सनक मन , हमर दुःखक अभिशाप हरु।।देबहुँके।।
रंक निमिष भरिमे हो राजा , दौड़े आन्हर हे मइया 
बौका गाबय गीत , चढ़ै गिरवर पर नांगर हे मइया 
चरण ' चरणमणि ' विलखि पुकारी , हमर कलंकक छाप हरु।।देबहुँके।।
                                                             चंद्रमणि 

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