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दिअ दरशन करूशन करुणामयि , सुरमुनि ठाढ़ दुआर।
दास भवन होअ उत्सव , जगत जननि दरबार।।
मणिद्वीप सुवरनमय सुरतरु तर अभिराम।
रतन वेदि मणिमण्डप तुअ शुभ शोभाधाम।।
कखन देखब भरि लोचन , मूरति परम ललाम।
प्रणत चरन युग सेवब , करब अनेक प्रणाम।।
ब्रह्मा हरिहर जेहि भज , आनक ककर हिसाब।
कवि गणनाथ विनत भल , विनत मोदमय गाव।।
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