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एहि कलिकाल उच्च द्विजवर कुल जनम तकर निरवाह अम्बे।
कयलहुँ सकल दयामयि अपनहिं , उर भरि पसर उछाह अम्बे।।
गुरुवर भय उपदेशि निमाहल , क्रमहि सकल आदेश - अम्बे।
काशी में थिर बास देल मोहि , भव विधि छूटल कलेश - अम्बे।
एलहुँ सदन अपन बुझि गृह मोर , राखब नियत निवास - अम्बे।
तुअ पद प्रेमधार हिअ उमड़ल , नयन युगल परमास - अम्बे।।
स्नेह भरल थर - थर तन पुलकित , गदगद बोल अनूप - अम्बे।।
कएल नेहाल दास करुणामयि , जीवन्मुक्त सरूप - अम्बे।।
प्रणत मगन गणनाथ जोरि कर , माँग एक वरदान - अम्बे।
तुअ पद रत थिर तारिणि कहइत , त्यागथि देह परान -अम्बे।।
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