गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

689 . गंगा -- पाप विनाशिनि पावनि भगवति गंगा विष्णु स्वरूपे।


                                      ६८९
                                     गंगा 
पाप विनाशिनि पावनि भगवति गंगा विष्णु स्वरूपे। 
धर्ममयी द्रवरूप सनातनि पापदहन अनुरूपे।।
स्नान पान निर्वाण सुदायिनि दिव्यलोक सोपाने। 
तीर्थपवित्र सरित अति निर्मल नाम जपत कल्याने।।
विष्णुपाद सँ जनन शम्भु सिर जटाजूट थिक वासे। 
सिन्धुक कामिनि मन्दाकिनि पुनि भागिरथी पुरु आसे।। 
जह्नुसुता हरिनारि भोगवति सतत धरिय तुअ ध्याने। 
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय निसदिन करू कल्याने।।

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