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दक्षिण काली
भगवति जगभरि जोति प्रकाशित दक्षिणकाली नामे।
नवयौवन तन सजल जलद रूचि कुच उन्नत अभिरामे।।
शिशु शशिभालहिं बदन भयानक विकट दसन फुंज केशा।
लहलह रसन सोनितसँ भीजल असित श्रवित सृकदेशा।।
शव दुइ कुण्डल कान नयन त्रय भीम भयानक रावे।
सघन पाँति कय शवकर गाँथल कटि पहिरन रूचि पावे।।
खर्ग मुण्ड दुई वाम भुजामह दहिन अभय वर दाने।
चारि भुजा उर मुण्डमाल लस वस नख निसि वसु जाने।।
शिव शव ऊपर तुअ पदयुग लस वास रुचय समसाने।
सिवा चतुर्दिश योगिनिगण युत आनन्दित करू गाने।।
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याणे।
सुत सम्पति सुख मंगल मुद नित दाहिनि रहु दय दाने।।
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