शनिवार, 18 फ़रवरी 2017

684 . शीतला -- रासभवाहिनि शीतल देवि। थिकिह दिगम्बरि सभ जग सेवि।।


                                    ६८४
                                शीतला 
रासभवाहिनि शीतल देवि। थिकिह दिगम्बरि सभ जग सेवि।।
मार्जनि कलस दुअओ करलाय मस्तक ऊपर सूप देखाय।।
पापरोगनाशिनि जग माय। सुमिरत भगत सकल सुख पाय।।
दाह पीड़ित कय शीतल भाष। छूटत रोग पुरत अभिलाष।।
पाप रोगक नहि आन उपाय। एक तुअ पदयुग विपति न खय।
उदक मध्य पूजत धरी ध्यान। तेकरा घर नहि रोग पयान।।
आधि व्याधि ग्रह दोष नसाय। निज सेवक पर सतत सहाय।।
आदिनाथ के दिअ वरदान। पुरु अभिलाष करिअ कल्याण।।

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