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जगद्धात्री
सिंह पर एक कमल राजित ताहि उपर भगवती।
उदित दिनकर लाल छवि निज रूप सुन्दर धारती।
पद सरोरुह जगत सेबित चारि भुज लसि राजती।
कर धनुष गहि शंख गहि अरु चक्र गहि जगपालती।।
सरद पूरन चन्द्र वदनी नयन तीनि भयावनी।
मणि मुकुट भूषण सहित पट झलक लाल सोहावनी।।
नाभि कुवलय नाभि तिरबलि बनै लसि अति शोभती।
शुभ नाग के उपवीत कान्धे हार मुकुतामणि लती।।
रत्न दीप विशाल वासिनि शम्भु संग विराजती।
ब्रह्मरूपा जगत व्यापित सकल तेज सोहावती।।
सकल मुनि गण नाग आदिक करत ध्यान महामती।
सुर विरंचि आदि सेवित वन्दिता - सुर भारती।।
परम - पावन नाम जाके पाप सभ को टालती।
सदय रूपा सतत धन दय कृपा को अनुसारती।।
यश बख़नत वेद आदिक जगत धात्री सुखवती।
शरण गहि नित ध्यान करू मन सतत छन प्रतिपालती।।
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