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भगवति भवभय हारिणि तारिणि कारिणि सकल जहाने।
विधि हरि हर तुअ पदयुग सेवक वेद भेद नहि जाने।।
नाना तन धय जगत वेआपित निज इच्छा थिक रुपे।
मायामय सभ घट घट वासिनि नित्य अनित्य सरूपे।।
जगजननि जगबाहरि हम नहि करिय सतत प्रतिपाले।
मन अभिलषित पुरित करू निशिदिन हरिय विपति सभकाले।
आदिनाथ के पुरिय मनोरथ दिअ निज भक्ति सुदाने।।
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