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आदि सनातनि नित्य जगतमय निर्गुण सगुण सनेह।
तीनि शक्ति त्रिगुणा तन भगवति नारि पुरुषमय देहे।।
विधि हरिहर अरु शेष ने जानत ततमत कय रहु वेदे।
एहि सँ आन जानत के महिमा जे नहि जानत भेदे।।
तोहरहि सओ सभ जग थिक रचना तन्त्र मन्त्र श्रुति सारे।
चारु आश्रम कर्म चारि पुनि इत्यादिक संसारे।।
कर्म क्रिया कर्ता तोहे ईश्वरि मायामय अनुमाने।
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याने।।
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