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भैरवी
अयुत दिवाकर उदित देहधुति रक्त पटम्बर शोभे।
रुधिर लेपितमय पीन उरजमुख लोहित कमल समाने।।
रत्नमुकुट शशधर सिर शोभित ह्रास ललित मृदुमाने।
पुस्तक अभय वाम दुअओ कर अक्षमाल वरदाने।।
दक्षिण युगल चारि कर राजित निज जन पालित माने।
शत्रु संहारिणि भैरवी भगवति विधि हरिहर धर ध्याने।।
आदिनाथ पर कृपायुक्त भय सतत करिय कल्याणे।।
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