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तारिणी
द्वीपी अजिन कटिदेश भीमतनु लम्बोदरि अति खर्बे।
अस्ति चारि बिच खप्पर राजित भाल भयानक गर्वे।।
पङ्कज ऊपर एक चरण तुअ तापर दुतिय विराजे।
नखरुचि शुचिसम अमृत हासयुत नवयौवन छवि छाजे।।
खर्ग कर्त्तृयुग दक्षिण कर लस मुण्ड कमल दुइ बामे।
शोभित भाल अक्षोभ महाऋषि तारिणि सतत सकामे।।
दन्तरदन्त विकाश त्रिलोचनि लहलह रसन सहासे।
उदित दिवाकर बिम्ब कान्ति तन ज्वलित चिता थिक वासे।।
जटाजूट अतिपिन्गल शोभित वेद भेद नहिं जाने।
कंजज श्रीपति सहित उमापति सतत धरत तुअ ध्याने।।
आदिनाथके दहिनि भय रहु सतत करि कल्याने।
कृपायुक्त भय दोष छमा कय चारु फल दय दाने।।
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