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भगवति भवभय दुःख निकन्दिनि अपरूप थिक तोर माया।
सभ जग मय तन नित्य सनातनि करिय अहोनिशि दाया।।
अनुछन निजपद भक्ति अचल दय दाहिनि रहु जगदम्बे।
हरिय दुसह दुख रोग शोक जत शत्रु संहारिय अम्बे।।
विधि हरिहर सहसानन आदिक वेद भेद नहि जाने।
एको नखक अग्रभरि महिमा के करि सकल बखाने।।
जगतजननि तोहे कृपायुक्त भय नित्य करिअ कल्याने।
आदिनाथ के सतत दोष छमि दय फल चारि सुदाने।।
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