ADHURI KAVITA SMRITI
बुधवार, 14 नवंबर 2012
173 . फूलों में भी
173 .
फूलों में भी
तेरी महक समायी हुई है
तेरी घनी काली जुल्फों को देख
बादल भी जल रहे कड़क रहे हैं
कोयल की कूक ने
तेरे मीठे बोलों की
मुझको याद दिला दी है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 25-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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