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कोई कोई नागिन समान होती है नारी
कठोर वक्ष पत्थर दिल नीरस हों जिसके प्राण
शब्द स्पर्श से पिघले न जिसके प्राण
बना देती जीवन को हलाहल
कर देती वो सर्वनाश
कर ताण्डव नृत्य वो
फिर भी न पाती चैन
कर देती भंग दूसरों का शील
चुकता करती भावुकता का मूल्य
तन मन भी क्यों न देतें हों झोंक !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
चित्र गूगल के सौजन्य से
कोई कोई नागिन समान होती है नारी
कठोर वक्ष पत्थर दिल नीरस हों जिसके प्राण
शब्द स्पर्श से पिघले न जिसके प्राण
बना देती जीवन को हलाहल
कर देती वो सर्वनाश
कर ताण्डव नृत्य वो
फिर भी न पाती चैन
कर देती भंग दूसरों का शील
चुकता करती भावुकता का मूल्य
तन मन भी क्यों न देतें हों झोंक !
सुधीर कुमार ' सवेरा '
चित्र गूगल के सौजन्य से
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