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जिन्दगी को बहुत करीब से मैंने देखा है
तुझे हर पल में हम और तुम का फर्क करते देखा है
कई बार हो चुके हैं दिलों के टुकड़े
पर वक्त के साथ जख्मों को भरते देखा है
हर को समझ ज़माने का साथ दिया
मतलब निकाल अपना हर को भागते देखा है
मरते हैं सभी एक न एक दिन
सबों को एक दिन रोते देखा है
मैं मरा नहीं हूँ अब तक
पर हर क्षण अपने आपको अपने सामने मरते देखा है
पला हूँ गरीबी में रहा नहीं कभी अमीरी में
ज़माने ने भी बेहद सताया है
महाजनों को भी आँखे दिखाते देखा है
होकर बेकसूर सही है बेइज्जती मैंने
अपनी हर मज़बूरी पर सबको हँसते देखा है
बड़ी मुश्किल से जिन्दगी में किसी का प्यार आया
तभी से उसको चाहा जब से उसे देखा है
उधर भी तभी से चाह थी
जब से उसने मुझे देखा है
देखी गयी न ये भी बात ज़माने को
अपने प्यार में भी ज़माने को आग लगाते देखा है
दिल थे टूटे जब तक तो जुटते भी थे
पर इस बार दिल को चूर - चूर होते देखा है
' सवेरा ' न कभी हारा था न कभी हारेगा
अपने को हरदम हँसते पाया था पायेगा
पढ़ के ' सवेरा ' के इस हाशिये को
हर के आँखों में झूठी सहानभूति को देखा है !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 11-02-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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