185 . देख मैं कितना मुर्ख हूँ
185 .
देख मैं कितना मुर्ख हूँ
किसी से भी अपनेपन की आशा करता हूँ
ना जाने क्यों सबको अपना समझता हूँ
पर जबकि सच यह है
कि जब तूँ अपनी न हो सकी
तो जग में कोई ऐसा भी होगा क्या ?
जो मेरा अपना हो सके
मुझको अपना समझ सके !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 13-12-1983
चित्र गूगल के सौजन्य से
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