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इस तन्हाई का ये तन्हा
लगता है इक अपना
जीवन में है एक
बस उम्मिदों का सपना
बहुत चाहता हूँ कहना
कैसे कहूँ
जब एहसास तुम्हारी होती है
तुम लगती हो बिलकुल अपना
ऐसे लगता है जैसे
छू लिए हों तुझे
खोता हूँ जब याद में तेरे
होती हो उस वक्त बाहों में मेरे
चूम लेता हूँ तुझको किस कदर
कैसे कहूँ
होती हो कितने पास तुम
होकर भी दूर इतनी
ये कैसे कहूँ
साँस से साँस टकरा जाती है
दो धड़कने भी एक हो जाती है
फिज़ा भी कैसे बहक जाती है
ये कैसे कहूँ
बह रही है बयार
या तेरे बालों की खुशबु की है महक !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 23-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
इस तन्हाई का ये तन्हा
लगता है इक अपना
जीवन में है एक
बस उम्मिदों का सपना
बहुत चाहता हूँ कहना
कैसे कहूँ
जब एहसास तुम्हारी होती है
तुम लगती हो बिलकुल अपना
ऐसे लगता है जैसे
छू लिए हों तुझे
खोता हूँ जब याद में तेरे
होती हो उस वक्त बाहों में मेरे
चूम लेता हूँ तुझको किस कदर
कैसे कहूँ
होती हो कितने पास तुम
होकर भी दूर इतनी
ये कैसे कहूँ
साँस से साँस टकरा जाती है
दो धड़कने भी एक हो जाती है
फिज़ा भी कैसे बहक जाती है
ये कैसे कहूँ
बह रही है बयार
या तेरे बालों की खुशबु की है महक !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 23-10-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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