शनिवार, 17 नवंबर 2012

178 . भूलों की एक याद

178 . 

भूलों की एक याद 
यादों की एक भूल 
मन में भरती रहती है एक टीस 
प्रिया की याद 
यादों की बौछार 
उसपे ये तन्हाई का आलम 
और ये सावन की बहार 
एक वर्ष बीते 
युग जीते 
पाया सुख हर सिंगार 
तब कहीं थे 
आज कहीं हैं 
पर होगा हर जन्म में 
ये बार - बार 
राखी का त्यौहार 
मिला न बहना का प्यार
बंजारे की जिन्दगी 
फूल खिली नहीं
मुरझा जायेगी !

सुधीर कुमार ' सवेरा '     04-08-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से   

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