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ये गम के बादलों का घेरा
है चारों ओर से घिरा
मत पूछो कोई
ऐसा क्यों हो गया
कोई आज बेवफा हो गया
मौत आ जाती गर
पहले ही कहीं मुझको
होती बड़ी मेहरबानी ऐ खुदा
न सहना पड़ता दर्द ये जुदाई का
क्या होता है दर्द बेवफाई का
रो पड़ता तूँ भी ऐ खुदा
अच्छा होता गर
मर जाता दिल में लिए अरमान मिलन का
कहना तो ना पड़ता अपनी ही जान को बेवफा
जो थी कभी मेरी आत्मा मेरी पूजा
उसी ने आज समझा है मुझको दूजा
जीता रहा जिसके लिए
उसी ने गैर आज मुझको समझा
निकलते थे हर साँस जिसके लिए हर पल
उसी ने आज मुझको बेगाना है समझा
काश ये धरती फटती जो पहले
दर्द ये जुदाई का
सहना तो न पड़ता !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 22-09-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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