197 . बचपन की बात है
197 .
बचपन की बात है
दौड़ते हैं बादल
पर लगता चाँद है
जवानी की बात है
होती है क्षीण जिसमे शक्ति
लगती वही ख़ुशी की बात है
इसी बीच आ जाता है बुढ़ापा
किसी लायक नहीं छोड़ता है
निकल जाता है आखिर में जनाज़ा !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 01-07-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से
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