ADHURI KAVITA SMRITI
बुधवार, 2 जनवरी 2013
195 . गैरों ने बहुत चाहा
195 .
गैरों ने बहुत चाहा
बागवाँ मेरा उजाड़ना
पर एक तिनका भी
न वो खिसका
पाए
पर जिन्हें घर था मेरा बसाना
टुकड़े - टुकड़े कर डाला
रह गया बस
दिल में बंद
अरमानों के आँसू बहाना !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 17-01-1984
चित्र गूगल के सौजन्य से
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