मंगलवार, 8 जनवरी 2013

205 . गुलमोहर की छाँव में


205 .

गुलमोहर की छाँव में 
जुबली झील के ठाँव में 
मन मेरा कह रहा 
कुछ - कुछ गुनगुना रहा 
बादलों की घटा 
घिर रही है यहाँ 
हवा भी हलकी - हलकी बह रही 
ऐसे मौसम में तूँ है कहाँ 
भिनी - भिनी ये सुगंध 
गुलाब की लग रही 
फव्वारों की ये रंगीनियाँ 
बह रही है यहाँ 
दिल में मेरे मन में 
सारी फ़िजा में 
छा गयी है बहार 
पर तेरे बिना 
है ये सारा विरान 
कोयल है कूक रही 
जवानियाँ बहक रही 
आ जो जा तूँ अभी 
हम भी बहक पड़े फिर अभी !

सुधीर कुमार ' सवेरा '   15-07-1980 

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