मंगलवार, 1 जनवरी 2013

192 . जिन्दगी में तलब साथी क़ी होती है


192 .

जिन्दगी में तलब साथी क़ी होती है 
साथी हसीन हो तो 
सफ़र सुहानी होती है 
रास्ता अगर पथरीला भी हो तो 
मखमली घास सी लगती है 
गर साथ प्यार का 
सुन्दर सी प्यारी का हो तो 
पर जब दिल टूटता है 
जैसे शीशा पत्थर पे फूटता है 
पर ये बेआवाज होती है 
इस निःशब्दता में भी 
समुद्र सी भीषण गर्जना 
छिपी होती है 
दूध में मक्खन जैसी 
बेवफाई का दर्द 
इस कदर बढ़ता है 
कि गम में जाम की तलब होती है 
इस जाम में गम 
शर्करा की तरह घुल जाती है 
तब जाम भी हसीन लगती है !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  21-06-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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