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भगवती
जयसि भगवती भक्त - तारिणि वैरि वारिणि हे।
पाद लम्बित चिकुर धारिणि - कोटि दिनकर - भासिनि।।
अभयवर करवाल मानुष - मुण्ड धारिणि हे।
कर मयादभुत कांजि शालिनि वेद बाहु विराजिनि।।
भीषण ललदुग्र रसना घोर हासिनि हे।
शयित शवगत पद सरोजिनि घनघनाघन रोचिनि।।
योगिनी गण संग रुचिर स्वैरचारिणि हे।
कालिके ललितेश पालिनि देवि किल्विष नाशिनि।।
दीनबन्धु जनानुकम्पिति भव सुधारिणि हे।।
दीनबन्धु झा ( मैथिल भक्त प्रकाश )