रविवार, 25 दिसंबर 2016

643 . से करू देवि दयामयि हे , थिर रह महाराज।


                                    ६४३
से करू देवि दयामयि हे , थिर रह महाराज। 
पूरिअ हमर मनोरथ हे , केकयि नहि बाज।।
नृपतिक ह्रदय ककर वश हे , ककरो नहि मीत। 
सौतिनि सामरि सौंपिन हे , मन हो भयभीत।।
तुअ शंकरि हम किंकरि हे , यावत रह देह। 
तुअ पद कमल नियत रह हे , मोर अचल सिनेह।।
रामचन्द्र सीतापति हे , होयता युवराज। 
त्रिभुवन आन एहन सन हे , नहि हित मोर काज।।
                                                       ( रामायण ) 

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