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से करू देवि दयामयि हे , थिर रह महाराज।
पूरिअ हमर मनोरथ हे , केकयि नहि बाज।।
नृपतिक ह्रदय ककर वश हे , ककरो नहि मीत।
सौतिनि सामरि सौंपिन हे , मन हो भयभीत।।
तुअ शंकरि हम किंकरि हे , यावत रह देह।
तुअ पद कमल नियत रह हे , मोर अचल सिनेह।।
रामचन्द्र सीतापति हे , होयता युवराज।
त्रिभुवन आन एहन सन हे , नहि हित मोर काज।।
( रामायण )
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