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श्रीमहेश्वरी
मैया महेशी कलेश हरु मोर , त्यागू ने देवी उदारपना।
वाणी आहाँ छी सची छी अहाँ , हरिलक्ष्मी अहीं छी अनन्तघना।।
पालै छी विश्व चराचर कै पुनि घालै छी दानव दैत्य गना।
मायासौं मोहित लोक करी पुनि विद्या अहीं छी आनन्दघना।।
तंत्र ने जानी ओ मन्त्र ने जानी कुकर्मपनामे ने मानी मना।
भारी भरोस अहैंक सदा दया देखू करू कविचन्द जना।।
( तत्रैव )
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