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जय जय त्रिभुवन सुन्दरि भगवति कृत बहु विध वर रुपे।
सिन्दुर पूर रुचिर तुअ अम्बर त्रिनयन वलित अनूपे।।
अरुण सरोरुह निहित चरण युग विहित वाल शशि भाले।
ललित चतुर्भुज कलित अभय वर पुस्तक विरचित माले।।
तरुण वयस शिशु दिनकर रूचि तनु सतत पुरित मुख हासे।
सुरगुरु सुरपति दुनुहुँ तुलित भेल जे जन तुअ पगु दासे।
त्वरित दुरित चय भारनिकन्दिनि रचित मनोरम हारे।
धरम करम उपगत रह ये जन तनिक परम सुख सारे।।
आगम चिलिखित तुअ गुन गाओल विमल नृत्य दिअ दाने।
सकल सभा जय करू परसनि भय भानुनाथ कवि भाने।।
भानुनाथ ( प्रभावतीहरण नाटक )
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