ADHURI KAVITA SMRITI
बुधवार, 21 दिसंबर 2016
639 . श्रीवनदुर्गा - जय जय विंध्यनिवासिनि। तनु रूचि निन्दित दामिनि।।
६३९
श्रीवनदुर्गा
जय जय विंध्यनिवासिनि। तनु रूचि निन्दित दामिनि।।
आनन शशधर मण्डल। तीनि नयन श्रुति कुण्डल।।
कनक कुशेशय आसन। वसय निकट पञ्चानन।।
शंख चक्र निरभय वर। कर धरु शशधरशेखर।।
तुअ पद पंकज मधुकर। हर्षनाथ भन कविवर।।
( हर्षनाथ काव्य ग्रन्थावली )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें