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श्रीश्यामा
जय दिग्वसना।। फूजल चिकुर विकट दशना।।
प्रलय पयोद कान्ति धरानन जय जय अट्टहास व्यसना।।
तन छन छिन्न मुण्ड असि निर्भय वर कर लह लह लह रसना।।
नर कर कृत कान्ची मुण्डावलि धरा असुर विग्रह ग्रसना।।
शोणित पान वदन सौं निसृत विस्तृत नियत धार लसना।।
तुअ उर दिनकर हिमकर ग्रहगण समन सतत वहै स्वसना।।
' चन्द्र ' चूड़ क्षेमंकरि श्यामा जय जय काल विभव अशना।।
( चन्द्र रचनावली )
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