38-
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
की जी नहीं सकते हो
की भूखे ही रह जाओगे
कब ख़त्म होगी
तेरे ये हरपने की प्रवृति
खुद के गौरव को
मिटटी में मिलाने की प्रवृति
जो आज न मुड पावोगे
तो जी नहीं पावोगे
ऐसा क्यों सोंचते हो
की अपने अधर्म से
धर्म का फल पावोगे
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
अपने हाथों से
रास्ता अपना खोद कर
मंजिल पर तुम पहुँच पावोगे
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
जिस रास्ते जो कोई
अब तक न पहुंचा
तुम भला कैसे पहुँच पावोगे ?
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
रावण बनके भला
तुम अपने को राम कहलवा पावोगे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-12-1983
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
की जी नहीं सकते हो
की भूखे ही रह जाओगे
कब ख़त्म होगी
तेरे ये हरपने की प्रवृति
खुद के गौरव को
मिटटी में मिलाने की प्रवृति
जो आज न मुड पावोगे
तो जी नहीं पावोगे
ऐसा क्यों सोंचते हो
की अपने अधर्म से
धर्म का फल पावोगे
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
अपने हाथों से
रास्ता अपना खोद कर
मंजिल पर तुम पहुँच पावोगे
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
जिस रास्ते जो कोई
अब तक न पहुंचा
तुम भला कैसे पहुँच पावोगे ?
ऐसा क्यों सोंचते हो ?
रावण बनके भला
तुम अपने को राम कहलवा पावोगे !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-12-1983
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