५६.
भारतीय धर्म का नाम मात्र
इतना महान है
बेचकर जिसे रजनीश भी
बन सकता भगवान् है
शब्दों का रहस्य इतना विकट है
शब्दों का जाल इतना प्रबल है
लिपट कर रह जाता जिसमे इंसान है
साधना कर शक्ति कोई पा लेता है
चमत्कार पर विश्ववास सबका हो जाता है
फिर बन वैद्य सबको बात ऐसा ही कहता है
करने और सुनने में जो रोगी को भाता है
फिर क्या ! भगवान् वो बन जाता है
स्थूल तक ही सिमित रह
सूक्ष्म तक सभी पंहुचना चाहता है
भोग - भोग से कहीं शमन भी हो पाता है
अब कौन कह सकता है
भगवान् घट - घट विराजते हैं
भगवान् राल्स राईस कार में पधारते हैं
पैसा अगर बहुत टेंट में हो
दर्शन भी तब हो सकते हैं
अब भक्तों को शमन और संन्यास से
समाधि की आवश्यकता नहीं
भगवान् सम्भोग से समाधि तक पहुंचाते हैं
विश्वास न हो फिर भी विश्वास कर लो
जिस रास्ते आज तक जंहाँ कोई नहीं पहुंचा
उस रास्ते आज के भगवान् पहुंचाते हैं
उलटी सीधी बात कर वो बात बनाते हैं
वही आजकल भगवान् कहलाते हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०२-०१-१९८४.- समस्तीपुर
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