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समाज का नैतिक स्तर
इतना सड गया है
गल - गल कर गिरने लगा है
बदबू सी उठने लगी है
नैतिकता की नाक ही सड़ने लगी है
स्वार्थ को देवता मान
पैसे को पूजने लगा है
यह समाज इतना सड गया है
निःस्वार्थ का भाव ही भूल गया है
त्याग की बात का अब युग गया है
राष्ट्र धर्म के नाम पर
स्वार्थ धर्म ही सबका बन गया है
दो लोग जो इसका अपवाद हैं
खुद को घुन लगा रहे हैं
अपना जीवन जला रहे हैं
टिमटिमाते प्रकाश से
घना कोहरा भगा रहे हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 09-12-1983
समाज का नैतिक स्तर
इतना सड गया है
गल - गल कर गिरने लगा है
बदबू सी उठने लगी है
नैतिकता की नाक ही सड़ने लगी है
स्वार्थ को देवता मान
पैसे को पूजने लगा है
यह समाज इतना सड गया है
निःस्वार्थ का भाव ही भूल गया है
त्याग की बात का अब युग गया है
राष्ट्र धर्म के नाम पर
स्वार्थ धर्म ही सबका बन गया है
दो लोग जो इसका अपवाद हैं
खुद को घुन लगा रहे हैं
अपना जीवन जला रहे हैं
टिमटिमाते प्रकाश से
घना कोहरा भगा रहे हैं !
सुधीर कुमार ' सवेरा ' 09-12-1983
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